वरना ऐसे बयान सार्वजनिक रूप से कौन दे सकता है?
पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कहते हैं कि बहुगुणा मूल रूप से बंगाल के हैं, और उनके सुपुत्र सौरभ बहुगुणा को भी बंगालियों का दर्द तो दिखता है, लेकिन पहाड़ियों की पीड़ा नहीं।
सुबोध उनियाल का कहना है कि “उनियाल” बिहार के हैं, और प्रेमचंद जी का मत है कि पहाड़ का कोई अपना है ही नहीं, सब राजस्थान और मध्य प्रदेश से हैं।
पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट जी का कहना है कि नमो शूद्र बंगालियों को जनजाति का दर्जा मिलना चाहिए, लेकिन जब उत्तराखंड के पर्वतीय समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की बात आती है, तो उनकी चुप्पी साध ली जाती है।
महेंद्र भट्ट जी (राज्यसभा सांसद व भाजपा अध्यक्ष) के अनुसार, पर्वतीय समाज के आक्रोश को दबाने के लिए मुकदमों की धमकी दी जा रही है, लेकिन इसके पीछे छिपे असली मकसद को हमें समझना होगा।
रितु खंडूरी जी (कोटद्वार विधायक व विधानसभा अध्यक्ष) का पहाड़ के विधायकों को अनुचित रूप से डपटना, इस बदलती जनसंख्या संरचना (Demographic Change) का संकेत देता है, जिसे हमें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
वोट बैंक के लालच में ये नेता पहाड़ के मूलनिवासियों को ही बाहरी बताने पर तुले हैं, जबकि बाहर से आए लोग खुद को सदियों से यहां का बताने में लगे हैं।
अब समय आ गया है कि हम उत्तराखंड को जनजाति दर्जा (Tribe Status, Schedule 5) दिलाने के लिए एकजुट हों। यदि संपूर्ण उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को जनजाति क्षेत्र घोषित किया जाता है, तो मूल निवास 1950 और एक सख्त भू-कानून स्वतः ही लागू हो जाएगा, जिससे हमारी पहचान और अधिकार सुरक्षित रहेंगे।
आइए, एकजुट होकर अपने हक की लड़ाई लड़ें!