उत्तराखंड विधानसभा में एक गंभीर विवाद उस समय खड़ा हो गया जब विधायक लखपत सिंह बुटोला जी ने सदन में पहाड़ों और उत्तराखंडवासियों के प्रति अपमानजनक भाषा के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने न केवल इस अन्यायपूर्ण रवैये की आलोचना की, बल्कि सदन से वॉकआउट भी किया।
स्पीकर की चुप्पी और पक्षपात
जब एक व्यक्ति पहाड़ियों को अपशब्द कह रहा था, तब विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूड़ी चुप रहीं, लेकिन जब कोई पहाड़ और उत्तराखंड के सम्मान में बोलने उठा, तो उन्होंने आक्रामक रुख अपनाया। यह दोहरा रवैया बेहद शर्मनाक और निंदनीय है।
“डबल इंजन सरकार” और उत्तराखंडियों का अपमान
क्या उत्तराखंड की जनता का अपमान करना राजनीति नहीं, लेकिन उनके हक़ की बात करना राजनीति है? स्पीकर महोदया, यदि आपको आक्रामकता दिखानी थी, तो तब दिखानी चाहिए थी जब आपकी पार्टी के ही एक विधायक ने पहाड़ों और यहां की जनता का अपमान किया था। यह बेहद अफ़सोसजनक है कि आप अपने राजनीतिक हितों को उत्तराखंड से ऊपर रख रही हैं और उन विधायकों को धमका रही हैं जो हमारी आवाज़ उठा रहे हैं।
खंडूड़ी जी की पुत्री से यह उम्मीद नहीं थी
रितु खंडूड़ी जी से यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। उनके पिता, भुवन चंद्र खंडूड़ी, उत्तराखंड के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक रहे हैं, जो पृथक राज्य आंदोलन के समर्थक थे। लेकिन उनकी पुत्री आज अपनी ही पार्टी और सत्ता के पक्ष में खड़ी दिख रही हैं, बजाय इसके कि वे पहाड़ और उसकी जनता के पक्ष में खड़ी हों।
“शानदार 2027” में जनता जवाब देगी
उत्तराखंड की जनता अब सब समझ चुकी है। 2027 में इन अहंकारी नेताओं को सबक सिखाया जाएगा। राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है प्रदेश को, और जो लोग विधायक लखपत सिंह बुटोला जी के साथ खड़े नहीं हुए, शायद उन्हें उत्तराखंड के सम्मान के लिए लड़ने की आदत नहीं रही।
उत्तराखंड में असल मुद्दों की अनदेखी
जहां उत्तराखंड के रोजगार, भूमि माफिया, बढ़ते अपराध और पलायन जैसे मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए थी, वहां उत्तराखंडियों के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले प्रेमचंद अग्रवाल को सोचने की जरूरत थी कि वे क्या बोल रहे हैं, और फिर रितु खंडूड़ी जी को देखना चाहिए कि वे कहां बैठी हैं और क्या कर रही हैं।
उत्तराखंड की जनता अब चुप नहीं रहेगी। राजनीति से ऊपर प्रदेश का सम्मान है, और जो भी इस सम्मान को ठेस पहुंचाएगा, जनता उन्हें जवाब देना जानती है।