आर्थिक और सामाजिक की संगठनों स्थापना

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मित्रों हम अक्सर राज्य में रोजगार और उद्यमशीलता के अभाव के लिए सरकार को कोसते हैं क्योंकि हमारा मानना है कि उद्योगों का विकास करना और रोजगार देना सरकार का काम है । मैं मानता हूं हमारा यह सोचना गलत है सरकार का काम रोजगार देना या उद्योग लगाने का नहीं है सरकार का काम उद्यमशीलता और रोजगार विकसित हो ऐसी नीतियां बनाने का है। ऐसी परिस्थितियों के निर्माण का है, और उत्तराखंड की सभी सरकारों ने चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार रही हो ऐसी नीतियां बनाई हैं जिससे कि रोजगार के अवसरों का निर्माण या उद्योगों का विकास होना चाहिए था । पर हुआ नहीं यह अलग बात है।

 

उद्यमशीलता और उद्योगों का विकास करना, आर्थिक और सामाजिक संगठनों का काम होता है जिसके परिणाम स्वरूप रोजगार विकसित होते हैं|

एक उदाहरण से मैं अपनी बात आप लोगों को समझाने की कोशिश करूंगा 1760 में इंग्लैंड में जब पहली औद्योगिक क्रांति की शुरुवात हुई तो इसमें आर्थिक संगठनों की भूमिका थी। इंग्लैंड के बाद जब बेल्जियम में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई तो उसमें भी वहां के व्यापारिक संगठनों की भूमिका थी। अमेरिका में जब 1870 में दूसरी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई तो उसमें भी सरकार की कोई भूमिका नहीं थी वहां के आर्थिक संगठनों ने दूसरी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की थी। 197 0 में कंप्यूटर के आने से तीसरी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई तो इसमें भी कंप्यूटर इंडस्ट्री से जुड़े लोगों जा हाथ था न की अमेरिकन गवर्नमेंट का। आज हम चौथी और औद्योगिक क्रांति के मध्य में जी रहे हैं और इस क्रांति की शुरुआत करने में भी किसी भी देश की सरकार की कोई भूमिका नहीं है व्यापारिक संगठनों और इंटरनेट इंडस्ट्रीसे जुड़े हुए लोगों के द्वारा इस क्रांति की शुरुआत हुई है। इसमें सरकार की भूमिका मात्र नियम कायदे नीतियां और कानून बनाने की है।

आज के उत्तराखंड में अगर शिक्षा उद्यमशीलता रोजगार के साधनों का अभाव और पलायन है तो उसका कारण सरकार की असफलता के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक संगठनों का ना होना भी है | उत्तराखंड में आर्थिक नहीं है आर्थिक संगठनों के मार्गदर्शन और दबाव के अभाव की वजह से नौकरशाही अपनी मर्जी से सरकार की नीतियों को लागू करती है ।प्रशासनिक अधिकारियों को किसी भी तरीके का व्यवसाई का अनुभव नहीं होता ना ही उन्हें स्थानीय लोगों की जरूरतों की प्रभाव होती है उत्तराखंड में सालों से यही होता रहा है । प्रशासनिक अधिकारी स्वयं योजनाएँ बनाते है उन्हें लागू भी वही करते हैं और उनका मूल्यांकन भी वो अपने आप ही करते है | उत्तराखंड के किसे भी जिले में सरकारी योजनाओं को बनाने में उन्हें लागू करवाने में स्थानीय लोगों की कोई भूमिका नहीं है |

परिणाम स्वरूप प्रशासनिक अधिकारी सारा काम फाइलों पर करते हैं योजनाएं राज्य से जिले में , जिले से ब्लॉक तक, ब्लॉक से तहसील तक ,तहसील से गांव तक, का सफर केवल फाइलों में ही तय करती हैं । उत्तराखंड में पिछले 20 22 सालों से यही होता आया है जिसका परिणाम भयानक पलपलायन के रूप में हमारे सामने है।

एक और उदाहरण से अपनी बात को समझाना चाहूं चुनाव आयोग का काम चुनाव करवाने का है, और यह देखने का होता है कि चुनाव ठीक तारीख से संपन्न हों | किसी भी पार्टी का कोई भी प्रत्याशी चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन ना करें तभी चुनाव सही तरीके से संपन्न होते हैं लोकतंत्र में इसी तरीके से जन भावनाओं का सम्मान होता है।
मित्रों अगर चुनाव आयोग यह तय करना शुरू कर दें किस पार्टी को कौन सा प्रत्याशी खड़ा करना है यह किस जगह से खड़ा करना है तो क्या चुनाव सही तरीके से संपन्न हो पाएगा मैं समझता हूं आपका जवाब होगा नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता ।

अब क्योंकि उत्तराखंड में किसी प्रकार के कोई आर्थिक संगठन नहीं है जो प्रशासनिक अधिकारियों को बता सके स्थानीय क्षेत्रों में इस तरह के उद्योगों को लगाना चाहिए इस तरीके के उद्योग लगाने से रोजगार का सर्जन होगा इसके अभाव में प्रशासनिक अधिकारी ही तय करते हैं कहां पर उद्योग लगाना है ।स्किल डेवलपमेंट के लिए क्या करना है ? जमीनों का रेट क्या होंगे ? कौन सा एनजीओ काम करेगा ? किस एनजीओ को प्रोजेक्ट मिलेगा ? कहां पर और कौन सा उद्योग शुरू करना ? अगर अधिकारी बदल गया तो तो योजना खत्म फाइल बंद, हमारे हिस्से के हजारों करोड रुपए इसी तरीके से बर्बाद हुए

कहने का अभिप्राय है जब तक उत्तराखंड के अंदर आर्थिक और व्यापारिक संगठनों का निर्माण उत्तराखंड के विकास के लिए बहुत जरूरी है आर्थिक और व्यापारिक संगठनों के अभाव ने उत्तराखंड के अंदर एक बड़ी विरोधाभास पूर्ण स्थिति पैदा कर दी है| हमारे गांव खाली हो रही है लेकिन हमारे गांव की जमीन बिक रही हैं और वहां पर बड़े आलीशान फार्म हाउस और रिसोर्ट बन रहे हैं। हमारे स्कूल बंद हो रहे हैं मगर मदरसे और मिशनरी स्कूल खुल रहे है। उत्तराखंड के युवा के पास रोजगार नहीं है जब कि मुरादाबाद ,सहारनपुर ,बिजनौर, अलीगढ़ के मुसलमान लगातार राज्य में आ रहे हैं इनके पास रोजगार कहां से आया ? कभी सोचा है आपने ? मुसलमान बहुत संगठित होकर काम करता है , योजना बना कर काम करता है | उनका सपोर्ट सिस्टम बहुत मजबूत होता है | आपकी गलियों में घूमने वाला फेरीवाला, आपका फैब्रिकेटर, कारपेंटर, मजदूर, मिस्त्री ,आपका कार-बाइक मकैनिक आपकी गलियों में घूमने वाला कबाड़ी अकेला नहीं है वो एक बहुत बड़े नेटवर्क का भाग है |

स्थानीय नौजवान असंगठित है इसलिए उसका मुकाबला नहीं कर पा रहे और ना चाहते हुए भी लोकल बिजनेस से बाहर हो रहा है ।आज भी उत्तराखंड सरकार की बहुत सारी अच्छी योजनाएं है अगर वो उत्तराखंड के भ्र्ष्ट अधिकारियों के पंजे से मुक्त हो सके तो राज्य के हजारों नोजवानो को विभिन्न प्रकार के कामों में दक्ष किया जा सकता है | हजारो नौजवान अपना बिज़नेस शुरू कर सकते हैं | हम थोड़ी ही समय में रोजगार और उद्यमशीलता के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकते हैं ,पलायन रुक सकता है |

इसके लिए सबसे आवश्यक आर्थिक,सामाजिक, शैक्षणिक संगठनों की स्थापना | हमें अगर एक समाज के रूप में जीवित रहना है अपने सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करना है तो हमें आर्थिक,सामाजिक, शैक्षणिक संगठन बनाने होंगे जो सरकार की नीतियों को और प्रशासनिक अधिकारियों की नियत को नियंत्रित कर सके |
ॐ तत्सत